खाना, ठिकाना और वाई-फाई, जम्मू हमलों में आतंकियों का मददगार कौन? पैसे के लालच में लोकल सपोर्ट का शक

खाना, ठिकाना और वाई-फाई, जम्मू हमलों में आतंकियों का मददगार कौन? पैसे के लालच में लोकल सपोर्ट का शक

[ad_1]

ऐप पर पढ़ें

Jammu Terror Attack: जम्मू कश्मीर में हालिया समय में आतंकी घटनाओं में इजाफा हुआ है। जिस तरह से आतंकवादी सेना के जवानों पर हमला कर रहे हैं और छिप जा रहे हैं, उससे एक पैटर्न बनने लगा है और लोकल सपोर्ट का शक गहराने लगा है। सेना के अफसरों का भी मानना है कि जिस तरह से हमले हो रहे हैं और उसके बाद आतंकवादी घने जंगलों में छिपने में सफल हो रहे हैं, वह बिना  स्थानीय लोगों की मदद के संभव नहीं। हाल ही में जम्मू में कुछ लोगों को इसी सिलसिले में गिरफ्तार किया गया है। पुलिस ने इसको लेकर बयान जारी किया है, जिसमें बताया गया है कि इन दोनों पर आतंकी गतिविधियों को समर्थन देने का आरोप है। इनमें से एक लायकात अली उर्फ पाऊ और दूसरा मूल राज उफ जेंजू है। यह दोनों कठुआ के रहने वाले हैं।

पुलिस के मुताबिक अली और राज पीर पंजाल के इलाके के रहने वाले हैं। दोनों जहां पर रहते हैं वहां सेलफोन और इंटरनेट सेवाएं ना के बराबर हैं। इनके गांव बडनोता रेंज के पास हैं जहां पर आठ जुलाई को 22 गढ़वाली राइफल के दो पैट्रोल टैंक्स पर हमला हुआ था। इसमें पांच जवान शहीद हो गए थे। जब यह टैंक माचेडी-किंडली-मल्हार रोड पर एक मोड़ से होते हुए गुजर रहे थे, तभी आतंकियों ने एक ऊंची जगह से हमला बोला था। यह इलाका माचेडी के जंगली इलाके में आता है। यहां के घने जंगल, पहाड़ी रास्ते और गुफाएं आतंकियों को छिपने के कई सुरक्षित विकल्प देती हैं। इस इलाके की सघनता कैसी है इसके बारे में सिर्फ इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि ड्रोन्स, हेलीकॉप्टर्स और मिलिट्री डॉग्स की मदद से लगातार चलाए जा रहे ऑपरेशंस के बावजूद अभी तक सेना आतंकियों पर पूरी तरह से काबू पाने में सफल नहीं हो पाई है। 

अली और राज से पहले पुलिस ने चार अन्य लोगों को गिरफ्तार किया था। इनमें शौकल अली भी था जो आतंकियों को पनाह देने के साथ खाना और वाई-फाई की सुविधा भी देता था। उसने यह सब 15 जुलाई को डोडा जिले के डेसा जंगल में हुए आतंकी हमले से पहले किया था। इस हमले में चार भारतीय सैनिक शहीद हुए थे। इससे पहले भी 19 जून को जम्मू पुलिस ने 45 साल के हकम दी को गिरफ्तार किया था। आरोप है कि उसने नौ जून को रियासी जिले में श्रद्धालुओं को लेकर जा रही बस के ऊपर हमले में आतंकवादियों की मदद की थी। पुलिस के मुताबिक इसके बदले में उसे 6000 रुपए मिले थे, जो उसके पास से बरामद हुए। हालांकि स्थानीय लोग आतंकियों की मदद से इनकार करते हैं। नाम न छापने की शर्त पर एक स्थानीय युवक ने कहा कि अगर कोई जिहादी आपके माथे पर एक-47 तान दे और खाना मांगे, मदद के लिए मजबूर करे तो आप क्या करेंगे?

इन हालात को लेकर अब बड़े सवाल उठने लगे हैं। इसमें सबसे अहम यह है कि आखिर कैसे पाकिस्तान से आए आतंकी इतने सघन इलाके में हमलों को अंजाम दे रहे हैं और फिर छिप जा रहे हैं? माना यह जा रहा है कि इन आतंकियों को स्थानीय लोगों से भरपूर समर्थन मिल रहा है। आतंकी इन्हें काफी ज्यादा पैसे का लालच देकर इलाके के रास्तों और अन्य संवेदनशील जानकारियां हासिल कर लेते हैं। सेना को भी इसको लेकर काफी समय से शक है। टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक एक रिटायर्ड सैन्य अधिकारी ने बताया कि बिना स्थानीय मदद के आतंकवादी इस तरह से हमलों को अंजाम नहीं दे सकते। उन्होंने कहा कि हालिया हमलों में आतंकवादियों ने जिस तरह मन-मुताबिक ठिकानों से गोलियां बरसाईं और फिर चकमा देकर भागने में कामयाब रहे, वह बताता है कि उन्हें किस तरह से लोकल सपोर्ट और गाइडेंस मिल रही है। 

सुरक्षा बलों के मुताबिक फिलहाल 60 से ज्यादा विदेशी आतंकी जम्मू क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्हें जंगल में लड़ाई की ट्रेनिंग मिली हुई है। इसके अलावा यह सभी एडवांस टेक्नोलॉजी से लैश हैं। इसमें सैटेलाइट फोन, थर्मल इमेजेरी के साथ-साथ अमेरिकन एम-4 कार्बाइन है। हमलों की टाइमिंग, बिल्कुल अलग-थलग इलाके और रात का वक्त भी आतंकियों को बड़े पैमाने पर लोकल सपोर्ट मिलने के संदेह की पुष्टि करता है। एक सुरक्षा अधिकारी ने बताया कि आतंकवादी बिना जीपीएस या कोई अन्य नेविगेशन सिस्टम इस्तेमाल किए सटीक जगह पर पहुंच रहे हैं। ऐसा तो तभी संभव है जब उनके साथ कोई ऐसा हो जो चप्पे-चप्पे से वाकिफ हो। जिस तरह से भांगरी शूटआउट हुआ या फिर चातरगल्ला माउंटेन पास अटैक हुआ, उसने इस बात को साबित कर दिया है। पुलिस ने स्थानीय लोगों को वॉर्निंग भी दी है कि वह आतंकियों का साथ न दें। 

[ad_2]