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नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने मंगलवार को कहा कि प्रतिबंधित संगठन जमात-ए-इस्लामी के नेताओं का चुनावों में भाग लेने का फैसला सही समय पर लिया गया है। मीडिया से बात करते हुए उमर ने जमात-ए-इस्लामी पर तंज कसते हुए कहा कि हमें बताया गया था कि चुनाव हराम हैं,लेकिन अब चुनाव हलाल हो गए हैं, चलिए देर आए दुरुस्त आए। मैं लंबे समय से कहता आ रहा हूं कि लोकतंत्र ही आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है। 35 सालों तक जमात-ए-इस्लामी ने एक खास राजनीतिक विचारधारा का पालन किया, इन चुनावों में उनके भाग लेने से लगता है कि अब वह बदल गई है। यह एक अच्छी बात है।
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि हम चाहते थे कि जमात पर से प्रतिबंध हटाया जाए और वह अपने चुनाव चिन्ह पर ही चुनाव लड़ें, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। फिर भी यह लोकतंत्र के लिए अच्छा है कि वह निर्दलीय उम्मीवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं। जमात के पीपुल्स कांफ्रेंस को समर्थन देने के सवाल पर उमर ने कहा कि यह जनता को तय करना है कि वह किस पार्टी का समर्थन करना चाहती है। पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के भाजपा के साथ संबंध सार्वजनिक हैं। अगर जमात पीपुल्स कॉन्फ्रेंस का समर्थन करती है, तो जनता को पता चल जाएगा कि वह किस पार्टी का समर्थन कर रहे हैं।
जमात के पूर्व सदस्यों ने निर्दलीय भरा नामांकन
इससे पहले जमात-ए-इस्लामी के कई पूर्व सदस्यों ने विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने के लिए मंगलवार को बतौर निर्दलीय उम्मीदवार अपना नामांकन पत्र दाखिल किया था। जेल में बंद अलगाववादी नेता सर्जन बरकती की ओर से उसकी बेटी सुगरा बरकती ने नामांकन पत्र दाखिल किया। दरअसल, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगा रखा है जिसके कारण वह चुनाव नहीं लड़ सकता। हालांकि जमात ने लोकसभा चुनावों के दौरान ही प्रतिबंध हटाए जाने पर चुनावों में हिस्सा लेने की इच्छा जताई थी।
आपको बता दें कि जमात ने आखिरी बार 1987 में हुए चुनावों में हिस्सा लिया था। वह अलगाववदियों के मंच हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का हिस्सा है,जिसने 1993 से 2003 तक चुनावों का बहिष्कार करने का फैसला किया था।
महसूस हो गया था कि अडियल रवैया छोड़ना होगा- पूर्व जमात प्रमुख मजीद
जमात के पूर्व प्रमुख तलत मजीद ने बतौर निर्दलीय पुलवामा निर्वाचन क्षेत्र से अपना नामांकन पत्र दाखिल किया। इसके बाद मीडिया से बात करते हुए मजीद ने कहा कि 2008 से राजनीति में आए बदलाव के बाद हमें यह महसूस हुआ कि हमें भी अब बदलना चाहिए और पुराने रवैए को छोड़कर राजनीति में शामिल होकर मुखरता से अपनी बात रखनी चाहिए। मैं 2014 से ही अपने विचारों को खुलकर व्यक्त कर रहा हूं और आज भी उसी एजेंडे को आगे बढ़ा रहा हूं।
केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में एक दशक के बाद विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। इस दौरान काफी कुछ बदल चुका है। केंद्र सरकार ने 2019 में आर्टिकल 370 को निरस्त कर दिया और कश्मीर को भारत का एक केद्र शासित हिस्सा बना लिया। कश्मीर और देश में लगातार यह मांग की जा रही थी कि कश्मीर में चुनाव होने चाहिए। चुनाव आयोग की तरफ से जारी कार्यक्रम के अनुसार, कश्मीर में 15,25 सितंबर और 1 अक्तूबर को मतदान होगा और फिर 4 अक्तूबर को मतगणना संपन्न होगी।
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