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जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पिछले कुछ दिनों में सार्वजनिक रैलियों में भावुक होते देखा गया है, जिससे संकेत मिलता है कि यदि भाजपा इस बार सत्ता में आती भी है तो शिवराज उस सरकार के मुखिया नहीं होंगे। ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि प्रदेश के चार बार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पार्टी में दूसरों के लिए रास्ता बनाने के लिए कहा जा सकता है।
शिवराज ने मंगलवार को अपने विधानसभा क्षेत्र बुधनी के लोगों को संबोधित करते हुए उनसे पूछा कि क्या उन्हें चुनाव लड़ना चाहिए या नहीं। उन्होंने भीड़ से यह भी पूछा कि क्या उन्हें बुधनी से चुनाव लड़ना चाहिए। इससे पहले पिछले रविवार को भी चौहान उस समय भावुक हो गए जब वह अपने गृह जिले सीहोर में एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे, जहां उन्होंने कहा था कि उनके जाने के बाद लोग उन्हें याद करेंगे।
भाजपा नें सांसद और मंंत्रियों को चुनावी रण में उतारा
मध्य प्रदेश के लिए उम्मीदवारों की दूसरी सूची में, भाजपा ने इस बार तीन केंद्रीय मंत्रियों और चार सांसदों को विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतारा है। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते और सांसद गणेश सिंह, रीति पाठक, राकेश सिंह और उदय प्रताप सिंह विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं।
इससे यह अटकलें तेज हो गई हैं कि पार्टी राज्य स्तर पर नेतृत्व परिवर्तन पर विचार कर रही है। भाजपा ने इंदौर-1 विधानसभा सीट से राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को भी मैदान में उतारा गया है। विजयवर्गीय ने बुधवार को भीड़ को संबोधित करते हुए कहा था कि पार्टी ने उन्हें सिर्फ विधायक बनने के लिए नहीं भेजा है, बल्कि बड़ी जिम्मेदारी दी जाएगी।
शिवराज के फिर सीएम बनने पर सस्पेंस
विधानसभा चुनाव लड़ रहे इन सभी दिग्गज नेताओं के समर्थकों को उम्मीद है कि चुनाव के बाद उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। हालांकि भाजपा ने अभी तक मुख्यमंत्री चेहरे की घोषणा नहीं की है और न ही चौहान को दोबारा सीएम पद की गारंटी दी है। ऐसे में चौहान अकेले लड़ाई लड़ रहे हैं। शिवराज हर दिन कम से कम 2-3 रैलियां और जनसभाएं कर रहे हैं, जहां वह सभी वर्गों के मतदाताओं के साथ बातचीत कर एक सीएम के रूप में पिछले 18 वर्षों के अपने काम पर प्रकाश डाल रहे हैं।
गुरुवार को बुरहानपुर में ‘लाडली बहना’ कार्यक्रम के दौरान चौहान ने कहा, ‘मैं भले ही पतला दिखता हूं, लेकिन डटकर लड़ता हूं।’ वह हर सभा में मतदाताओं से भावनात्मक अपील करते हैं। बुरहानपुर में उन्होंने कहा कि इस दुनिया को छोड़ने से पहले वह यह सुनिश्चित करेंगे कि राज्य में हर लड़की को सम्मानजनक जीवन मिले।
राजस्थान में अकेले लड़ाई लड़ रहीं वसुंधरा
बीजेपी की एक और नेता और राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे सिंधिया भी ऐसी ही लड़ाई में फंस गई हैं। राजस्थान की दो बार की मुख्यमंत्री को पार्टी ने अभी तक कोई महत्वपूर्ण प्रचार जिम्मेदारी नहीं दी है। वसुंधरा राजे भी चुनाव से पहले अपने प्रचार अभियान पर हैं। वह अपने समर्थकों द्वारा आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लेने के दौरान हर दिन 2-3 सार्वजनिक सभाओं को संबोधित कर रही हैं।
पिछले कुछ दिनों से वसुंधरा कम से कम दो मंदिरों का दौरा कर चुकी हैं। वह प्रोटोकॉल के तहत प्रधानमंत्री मोदी की रैली जैसे बड़े पार्टी कार्यक्रमों में शामिल होती हैं, लेकिन उसके बाद, वह छोटी सभाओं को संबोधित करते हुए अपने स्वयं के दौरे कार्यक्रमों पर जाती हैं।
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