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CJI Chandrachud News: सीजेआई चंद्रचूड़ वाली बेंच ने लक्जरी कार निर्माता कंपनी बीएमडब्ल्यू इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को 2009 में ग्राहक के साथ की गई धोखाधड़ी के मामले में 50 लाख का जुर्माना देने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना हाई कोर्ट के आदेश को पलटकर यह फैसला सुनाया और कंपनी को आदेश दिया कि वे ग्राहक को 50 लाख रुपए जुर्माने के तौर पर दें।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला तथा न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने तेलंगाना उच्च न्यायालय के उस आदेश को खारिज किया, जिसमें हाई कोर्ट ने ऑटो कंपनी के खिलाफ अभियोजन को रद्द कर दिया था और कंपनी को खराब वाहन के स्थान पर शिकायतकर्ता को नया वाहन देने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने 10 जुलाई के अपने आदेश में कहा, “इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, हमारा विचार है कि निर्माता कंपनी बीएमडब्ल्यू इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को विवादित सभी दावों के पूर्ण और अंतिम निपटान में 50 लाख रुपये की राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया जाना चाहिए। निर्माता को यह राशि 10 अगस्त 2024 को या उससे पहले इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर के जरिए शिकायतकर्ता को देनी होगी।”
15 साल पुरानी धोखाधड़ी का केस
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह 15 साल पुराना धोखाधड़ी से जुड़ा केस है। BMW इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और इसके प्रबंधन के कुछ सदस्यों के खिलाफ शिकायतकर्ता ने फ्रॉड करने का आरोप लगाया था। इसमें शिकायतकर्ता GVR इंफ्रा प्रोजेक्ट्स है। साल 2012 में हाई कोर्ट ने इस मामले में कंपनी को आदेश दिया था कि वह ग्राहक को नई कार उपलब्ध कराए। इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी।
15 साल पुरानी लंबी कानूनी लड़ाई को समाप्त करते हुए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी परडियावाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने विवाद के पूर्ण और अंतिम निपटारे के रूप में मुआवजे के रूप में BMW द्वारा GVR इंफ्रा प्रोजेक्ट्स को 50 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।
BMW ने नई कार बदलने का प्रस्ताव दिया था
लाइव लॉ डॉट इन के मुताबिक, BMW ने खराब कार को नई कार से बदलने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन शिकायतकर्ता ने इससे इनकार किया और ब्याज सहित अपने पैसे वापस करने की मांग की। हाईकोर्ट के समक्ष BMW के वकील ने दलील दी कि वे हमेशा हाईकोर्ट के निर्देश का पालन करने के लिए तैयार और इच्छुक हैं। उन्होंने पुरानी कार वापस करने की मांग करते हुए शिकायतकर्ता को पत्र लिखा था।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
सुप्रीम कोर्ट ने मामले में कहा कि कंपनी निर्माता ने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती नहीं दी है और पुरानी कार को बदलने की इच्छा व्यक्त की है। अदालत ने कहा, “विवाद की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, यह केवल एक खराब वाहन तक ही सीमित है। इसलिए हमारा विचार है कि विवाद के लगभग 15 साल बाद इस स्तर पर अभियोजन को जारी रखने की अनुमति देना न्याय के उद्देश्यों को पूरा नहीं करता।” सुप्रीम अदालत ने शिकायतकर्ता को मुआवजे के भुगतान का निर्देश देने के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत निर्णय लिया। अदालत ने यह भी कहा कि यदि शिकायतकर्ता ने 2012 में कार बदलने के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया होता तो उस वाहन का मूल्य आज तक कम हो गया होता।
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