क्या हैं असम के मोइदम्स, UNESCO की सूची में शामिल; जानें क्यों हैं खास

क्या हैं असम के मोइदम्स, UNESCO की सूची में शामिल; जानें क्यों हैं खास


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UNESCO का 46वां वर्ल्ड हेरिटेज कमेटी सेशन भारत के लिए बड़ी खुशखबरी लेकर आया है। पूर्वोत्तर से पहली बार किसी धरोहर ने इस सूची में जगह बनाई है। अहोम वंश के मोइदम्स को लिस्ट में शामिल किया गया है। साल 2023-24 के लिए भारत की तरफ से मोइदम्स को नॉमिनेट किया गया था। ‘मोइदम्स’ पिरामिड सरीखी अनूठी टीलेनुमा संरचनाएं हैं, जिनका इस्तेमाल ताई-अहोम वंश द्वारा अपने राजवंश के सदस्यों को उनकी प्रिय वस्तुओं के साथ दफनाने के लिए किया जाता था।

असम में अहोम वंश के सदस्यों को उनकी प्रिय वस्तुओं के साथ टीलेनुमा संरचना में दफनाने की व्यवस्था ‘मोइदम्स’ को शुक्रवार को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया। इसी के साथ ‘मोइदम्स’ इस सूची में जगह बनाने वाली पूर्वोत्तर भारत की पहली सांस्कृतिक संपत्ति बन गई। यह निर्णय भारत में आयोजित किए जा रहे विश्व धरोहर समिति (डब्ल्यूएचसी) के 46वें सत्र में लिया गया। 

भारत ने 2023-24 के लिए यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन) की विश्व धरोहर सूची में शामिल किए जाने के लिए देश की ओर से नामांकन के रूप में ‘मोइदम्स’ का नाम दिया था। ताई-अहोम राजवंश ने असम पर लगभग 600 साल तक शासन किया था।

क्यों खास है मोइदम

ये टीले अपनी बनावट के लिए बेहद खास हैं और अहोम के विदेशी प्रभावों को दर्शाते हैं। ये पूरे ऊपरी असम में पाए जाते हैं, जहां अहोम की पहली राजधानी चरईदेव है। चराईदेव में अहोम राजवंश को पूरे ताई-अहोम संस्कारों से दफनाया गया है। इस जगह को काफी पवित्र माना जाता है। हर मोइदम में तीन हिस्से होते हैं। पहला, एक कमरा या वॉल्ट जिसमें शरीर को रखा जाता है।

दूसरा, कमरे को ढकने वाला एक अर्धगोलाकार टीला और तीसरा शीर्ष पर ईंट की एक संरचना होती है, जिसे चाव चाली कहा जाता है। मोइदम्स का आकास छोटे टीले से लेकर बड़ी पहाड़ियों तक होता है।