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AIMIM (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) अध्यक्ष एवं हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने हाल ही में एक ट्वीट करते हुए मध्य प्रदेश में विदिशा कलेक्टर बुद्धेश कुमार वैद्य के तबादले को राजनीति से प्रेरित बताया था। उन्होंने वैद्य की बदली को विदिशा के 11वीं सदी के बीजामंडल विवाद से जोड़ते हुए लिखा था कि यह फैसला संघ के दबाव में लिया गया है। जिसके बाद बुधवार को प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने इस विवाद पर अपनी प्रतिक्रिया दी। ओवैसी के आरोप का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री मोहन यादव ने बुधवार को कहा कि जिसकी भावना जैसी होगी वो वैसे ही देखेगा।
ओवैसी ने आरोप लगाया था कि बुद्धेश वैद्य का तबादला इसलिए किया गया क्योंकि उन्होंने बीजामंडल विवाद से निपटने में कानून का पालन किया था। जिसेक बाद इस आरोप के बारे में पूछे जाने पर बुधवार को सीएम मोहन यादव ने कहा, ‘जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। जिसकी दृष्टि तिरछी है, वो दुनिया भी तिरछी देखेगा, हम उनके लिए भी सद्बुद्धि की कामना करते हैं।’
इससे पहले ओवैसी ने मंगलवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पेपर कटिंग शेयर करते हुए लिखा था, ‘मध्य प्रदेश में संघ (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) के संगठनों ने मांग की कि उन्हें मस्जिद में नमाज़ पढ़ने की अनुमति दी जानी चाहिए। जिला कलेक्टर ने ASI (पुरातत्व विभाग) गजट का हवाला देते हुए संरचना को मस्जिद बताया और अनुमति देने से इनकार कर दिया। कलेक्टर का तबादला इसलिए किया गया क्योंकि उन्होंने कानून का पालन किया। वक्फ संशोधन विधेयक का यही खतरा है। सरकार कलेक्टर को बहुत ज्यादा अधिकार देना चाहती है, ताकि अगर कोई कहे कि मस्जिद.. मस्जिद नहीं है, तो कलेक्टर को भीड़ की मांग माननी होगी या फिर उसका तबादला कर दिया जाएगा। कोई भी सबूत पर्याप्त नहीं होगा।’
ओवैसी ने अंग्रेजी अखबार की जो पेपर कटिंग शेयर की, उसमें विदिशा के 11वीं सदी के बीजामंडल स्मारक को लेकर जारी विवाद की टाइमलाइन देते हुए बताया गया था कि किस तरह उसे विजया मंदिर बताते हुए हिंदू संगठनों ने वहां नागपंचमी पर पूजा की इजाजत मांगी थी, लेकिन विदिशा जिला प्रशासन ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की 1951 की अधिसूचना का हवाला देते हुए इसे मस्जिद बताया और नागपंचमी पर बीजामंडल को खोलने से इनकार कर दिया। जिसके बाद राज्य सरकार ने शनिवार को विदिशा कलेक्टर बुद्धेश कुमार वैद्य का ट्रांसफर कर दिया था, और उनकी जगह रोशन कुमार सिंह को यहां की जिम्मेदारी सौंपी थी।
क्या है बीजामंडल विवाद?
हिंदुओं के एक समूह ने हाल ही में तत्कालीन कलेक्टर वैद्य को एक ज्ञापन सौंपते हुए उनसे नागपंचमी त्योहार के अवसर पर पूजा-अर्चना के लिए विदिशा शहर में स्थित 11वीं शताब्दी के बीजामंडल स्मारक को खोलने का अनुरोध किया। ASI संरक्षित इमारत होने की वजह से जिलाधिकारी ने अर्जी ASI को भेज दी, जिसने 2 अगस्त को 1951 के एक राजपत्र अधिसूचना का हवाला देते हुए कहा कि बीजामंडल एक मंदिर नहीं, बल्कि एक मस्जिद था।
उधर ज्ञापन सौंपने वाले हिंदू संगठन के नेता शुभम वर्मा ने कहा था, ‘हम पिछले 30 साल से नागपंचमी पर वहां (ढांचे के बाहर) पूजा करते आ रहे हैं, लेकिन किसी ने यह नहीं कहा कि यह मंदिर नहीं बल्कि मस्जिद है।’ वर्मा ने जिलाधिकारी के पत्र और ASI की गजट अधिसूचना को दिखाते हुए कहा कि ASI द्वारा इसे मस्जिद बताए जाने से हिंदुओं की भावनाएं आहत हुई हैं।
इस बारे में वैद्य ने कहा था कि ASI इस ढांचे का संरक्षक है, इसलिए उन्होंने मामले पर निर्णय लेने के लिए ज्ञापन उसे भेजा था।
बता दें कि बीजामंडल को हिंदू संगठन के लोग विजया मंदिर मानते हैं और ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर उनका कहना है कि इस मंदिर का निर्माण चालुक्य वंशी राजा कृष्ण के प्रधानमंत्री वाचस्पति ने अपनी विदिशा विजय के उपरांत करवाया था। हालांकि कालांतर में मुस्लिम आक्रांताओं ने इस मंदिर पर कई बार हमला करते हुए इसे तोड़कर इसका स्वरूप बदल दिया। जिसके बाद ASI ने भी 1951 की अपनी अधिसूचना में इसे मन्दिर की जगह मस्जिद बताया।
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