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विदेशों में पढ़ने-पढ़ाने को लेकर देश के धनाढ्य परिवारों में गहरा आकर्षण रहा है। हाल ही में हुए एक सर्वे में इस बात का दावा किया गया है कि देश के तीन चौथाई अमीर अपने बच्चों को विदेशों में ही पढ़ाना चाहते हैं। सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, तीन-चौथाई से अधिक अमीर भारतीयों ने अपने बच्चों को शिक्षा के लिए या तो विदेश भेजा है या भेजने की योजना बना रहे हैं। मार्च में 1456 भारतीयों पर हुए सर्वेक्षण में कहा गया है कि 78 फीसदी लोगों ने कहा कि वे अपने बच्चों को विदेशों में पढ़ाने को इच्छुक हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन 1456 भारतीयों पर यह सर्वे हुआ है उनके पास 84 लाख रुपये (एक लाख डॉलर) से लेकर लगभग 17 करोड़ रुपये (2 लाख डॉलर) का निवेश योग्य सरप्लस था। निवेश योग्य सरप्लस वह राशि होती है जो कुल संपत्ति से अलग रखी जाती है।
विदेशी बैंक HSBC द्वारा किए गए Global Quality of Life 2024 सर्वे में कहा गया है कि भारतीयों के लिए पसंदीदा देशों में अमेरिका सबसे ऊपर है। इसके बाद ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर का स्थान आता है। सर्वे में कहा गया है कि भारतीय माता-पिता में बच्चों के लिए विदेश में शिक्षा की चाह इतनी प्रबल है कि वे आर्थिक कष्ट झेलने को भी तैयार रहते हैं। सर्वे में ये बात भी निकल कर सामने आई है कि कई माता-पिता अपने जीवन भर की कमाई और रिटायरमेंट में मिली राशि भी इस पर खर्च करने को बेकरार रहते हैं।
सर्वे में कहा गया है कि विदेशों में शिक्षा की अपेक्षित या वास्तविक लागत सालाना 62,364 अमेरिकी डॉलर है और इसमें माता-पिता की सेवानिवृत्ति बचत का 64 प्रतिशत तक खर्च हो सकता है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि अधिकांश माता-पिता विदेश में बच्चों की शिक्षा के लिए ना सिर्फ अपनी बचत राशि को खत्म कर देते हैं बल्कि कई माता-पिता तो भारी कर्ज लेते हैं, जबकि कई अपनी चल-अचल संपत्ति भी बेच देते हैं।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि इसके पीछे सबसे बड़ा कारण विदेश में शिक्षा की गुणवत्ता है। इसके बाद किसी क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल करने की संभावना है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि जब भारत से कोई बच्चा शिक्षा प्राप्त करने के लिए विदेश जाता है, तो देश में रह रहे उनके माता-पिता के सामने सबसे बड़ी चिंता पैसों से जुड़ी होती है। उसके बाद ही कोई माता-पिता सामाजिक या मानसिक चिंताओं से परेशान होते हैं।
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