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हरियाणा विधानसभा चुनाव में हार कांग्रेस के लिए बड़ा झटका है। उससे भी बड़ा झटका भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा अपने आप को पार्टी का ‘एक-मैन आर्मी’ मानते थे, और तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के सपने देख रहे थे, लेकिन उनका सपना साकार नहीं हो सका। 77 वर्षीय हुड्डा कई राजनीतिक लड़ाइयों के अनुभवी योद्धा हैं और इस बार भी राज्य में पार्टी का नेतृत्व कर रहे थे, लेकिन यह उनके राजनीतिक करियर में एक बड़ा झटका साबित हुआ। अब उनकी तुलना मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ से की जा रही है।
कांग्रेस की हार और भाजपा की अप्रत्याशित जीत
हरियाणा में भाजपा ने वह हासिल किया जो एक सप्ताह पहले तक नामुमकिन लग रहा था। भाजपा पिछले 10 वर्षों से सत्ता में रहते हुए, तगड़ी एंटी-इंकंबेंसी का सामना कर रही थी। यहां तक कि लोकसभा चुनावों में भी भाजपा ने राज्य की 10 में से केवल 5 सीटें जीती थीं। इसके बाद, 5 अक्टूबर को आए एग्जिट पोल्स ने भी कांग्रेस की जीत की भविष्यवाणी की थी। लेकिन जैसे-जैसे 8 अक्टूबर को मतगणना के परिणाम सामने आए, भाजपा ने निर्णायक बढ़त हासिल कर ली।
भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए बड़ा झटका
भूपेंद्र सिंह हुड्डा हरियाणा कांग्रेस के प्रमुख और दो बार के मुख्यमंत्री रह चुके हैं, वह कांग्रेस की जीत को लेकर बेहद आश्वस्त थे। उन्होंने पार्टी के चुनावी अभियान को अपने कंधों पर लिया था और आम आदमी पार्टी (AAP) के साथ गठबंधन के सभी विकल्पों को नजरअंदाज कर दिया था। 2005 में भजन लाल को मात देकर पहली बार मुख्यमंत्री बने हुड्डा ने कांग्रेस के इस चुनाव को पूरी तरह से खुद के इर्द-गिर्द घुमाया। लेकिन जैसे ही भाजपा ने बढ़त हासिल की, कांग्रेस के कार्यालयों में सन्नाटा छा गया।
कमलनाथ और हुड्डा की समान कहानी
मध्य प्रदेश और हरियाणा के चुनावी परिणाम कांग्रेस के लिए एक बड़ी विफलता के रूप में उभरे हैं। मध्य प्रदेश में भी 77 वर्षीय कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा, जबकि भाजपा वहां 15 साल की सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही थी। कमलनाथ ने भी सभी चुनावी मुद्दों और टिकट वितरण पर अपना पूरा नियंत्रण रखा था, लेकिन वे पार्टी को जीत दिलाने में नाकाम रहे। कांग्रेस ने कमलनाथ को हार का जिम्मेदार ठहराते हुए उन्हें हटाकर 50 वर्षीय जितू पटवारी को मध्य प्रदेश कांग्रेस का नया प्रमुख नियुक्त किया।
हुड्डा की स्थिति भी कमलनाथ जैसी
हरियाणा में भी हुड्डा का मामला कमलनाथ जैसा ही रहा। कांग्रेस हाईकमान ने हुड्डा पर पूरा भरोसा जताते हुए टिकट वितरण से लेकर चुनावी अभियान की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी थी। कम से कम 90 में से 70 उम्मीदवार हुड्डा के खेमे से थे। पार्टी की अन्य प्रमुख नेता जैसे कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला को नजरअंदाज कर दिया गया। ये दोनों नेता भी खुद को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में पेश कर रहे थे।
हुड्डा के लिए यह चुनाव जीत का एक सुनहरा मौका था। किसान आंदोलन, पहलवानों का विरोध प्रदर्शन, बेरोजगारी, अग्निपथ योजना जैसे मुद्दे कांग्रेस के पास भाजपा को घेरने के लिए पर्याप्त थे। लेकिन चुनाव परिणामों ने साबित किया कि कांग्रेस, खासकर हुड्डा, भाजपा के खिलाफ मजबूत रणनीति नहीं बना सकी।
कांग्रेस की पुरानी गारद का संकट
मध्य प्रदेश और हरियाणा के ये चुनाव परिणाम कांग्रेस की पुरानी गारद और युवा नेतृत्व के बीच बदलाव की आवश्यकता की ओर इशारा करते हैं। बार-बार की विफलताओं के बावजूद कांग्रेस ने कमलनाथ और हुड्डा जैसे पुराने नेताओं को चुनावी जिम्मेदारी सौंपी, जिसने पार्टी को दो महत्वपूर्ण राज्यों में हार दिलाई। अब यह देखना बाकी है कि कांग्रेस हरियाणा में भी मध्य प्रदेश की तरह नेतृत्व परिवर्तन का कदम उठाती है या नहीं।
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