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इजरायल-हमास के बीच एक साल पहले शुरू हुआ युद्ध अब मीडिल-ईस्ट के बड़े हिस्से में फैल चुका है। युद्ध का दायरा लेबनान और ईरान तक बढ़ गया है। मध्य पूर्व में यह अशांति भारत के लिहाज से चिंताजनक है। कच्चे तेल की कीमतों में लगातार उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है। विशेषज्ञों को कहना है कि अगर कच्चा तेल 10 डॉलर प्रति बैरल तक बढ़ता है तो इससे भारत में महंगाई 0.5 फीसदी तक बढ़ जाएगी। क्योंकि भारत अपनी जरूरत का करीब 80 फीसदी कच्चा तेल आयात करता है। कीमतों में बढ़ोतरी से साफ है कि हर सामान की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ढुलाई लागत बढ़ेगी।
फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्टर्स ऑर्गेनाइजेंशन (फियो) के महानिदेशक एवं सीईओ डॉ. अजय सहाय कहते हैं कि भारत मध्य-पूर्व के देशों के साथ बड़ा व्यापारिक साझेदार है। वह खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) में शामिल सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, बहरीन, कुवैत और ओमान के साथ अपने व्यापारिक रिश्ते तेजी से बढ़ रहा है। संयुक्त अरब अमीरात के साथ एफटीए भी कर चुका है, जो लागू हुआ है। भारत खाड़ी देशों के साथ सालाना 200 अरब अमेरिकी डॉलर का कारोबार करता है, जिसमें 100 बिलियन से कम का निर्यात है और 100 बिलियन डॉलर से अधिक का आयात शामिल है।
हवाई खर्च में इजाफा
रूस और यूक्रेन का हवाई क्षेत्र पहले से ही उड़ान सेवा के लिए बंद था। अब ईरान और इजरायल के बीच के क्षेत्र में भी हवाई उड़ान सेवा बंद है, जिससे विमानों को लंबा चक्कर लगाकर जाना पड़ रहा है। इससे भारत से खाड़ी देश और यूरोप जाने का खर्च बढ़ा है। डॉ. अजय सहाय कहते हैं कि दुनिया में इन दोनों क्षेत्र के बीच जारी संघर्ष खत्म नहीं हुआ तो भारत पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा।
भारत का खर्च भी बढ़ा
विशेषज्ञ भी मान रहे हैं कि खाड़ी में संघर्ष भारत के लिए काफी खर्च वाला है। एक तरफ माल ढुलाई के लिए पोतों को लंबा चक्कर लगाना पड़ रहा है तो युद्ध की स्थिति के बीच माल ढुलाई में लगे पोत की सुरक्षा में मर्चेंट नेवी को बड़ी हिस्से में निगरानी करनी पड़ रही है, जिसपर हर रोज करोड़ों रुपया अतिरिक्त खर्च हो रहा है। एक अधिकारी बताते हैं कि युद्ध की स्थिति में जब लंबा रास्ता पोत को तय करना पड़ रहा है तो उस वक्त हूती व अन्य समुद्री लुटेरों द्वारा हमला किए जाने का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए निगरानी को बढ़ाना पड़ा है। नेवी के अतिरिक्त पोत निगरानी के लिए खड़े करने पड़े हैं।
लाल सागर में तनातनी से बढ़ी माल ढुलाई लागत
भारत का खाड़ी देश और यूरोप के साथ कारोबार लाल सागर से होता है। इसी रास्ते से माल ढुलाई होती है। एक वर्ष पहले तक यमन के आसपास के समुद्री इलाके में हूती विद्रोही सक्रिय थे, लेकिन युद्ध के हालत से लाल सागर का बड़ा हिस्सा प्रभावित है। रसद संबंधी चुनौतियों के चलते अगस्त में देश का निर्यात प्रभावित हुआ और इसमें 9.3 फीसद की गिरावट आई है।
अब सामान को यूरोप तक लाने-ले जाने के लिए शिपिंग कंपनियां हॉर्न ऑफ अफ्रीका और केप ऑफ गुड होप के (दक्षिणी अफ्रीका) आसपास से होकर गुजरने वाले लंबे समुद्री रास्तों का उपयोग कर रही हैं। उधर, पूर्वी तट से और मलक्का जलडमरूमध्य के रास्ते रूसी कच्चे तेल को लाने से व्यापार मार्ग लंबा हो जाएगा।
इनका निर्यात हो सकता है प्रभावित
रत्न एवं आभूषण, कीमती धातुएं, इंजीनियरिंग गुड्स, रेडीमेड कपड़े, कंप्यूटर सहित मशीनरी, फल, सब्जी व राशन, कार्बनिक रसायन, विद्युत मशीनरी/उपकरण, लोहा, इस्पात और दवाएं।
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