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केरल के कन्नूर जिले में पारसिनी मदप्पुरा श्री मुथप्पन मंदिर मानव और अन्य जीवित प्राणियों के बीच में एक संबंध स्थापित करता हुआ नजर आता है। वलपट्टनम नदी के तट पर बसे इस मंदिर की सबसे बड़ी पहचान उसके दरवाजे के बाहर खड़ीं कुत्तों की दो कांस्य की मूर्तियों से होती है। यह मंदिर भगवान मुथप्पन का है, भगवान मुथप्पन को भक्त भगवान शिव और विष्णु का अवतार मानते हैं। भक्तों का मानना है कि कुत्ता भगवान मुथप्पन का सबसे पसंदीदा जानवर है। ऐसे में यहां हर दिन हजारों भक्त भगवान की पूजा के साथ-साथ कुत्तों को भी पूजने के लिए मंदिर परिसर में आते हैं, जब भगवान की प्रार्थना पूरी हो जाती है तो प्रसाद को सबसे पहले कुत्तों को परोसा जाता है।
इस मंदिर का महत्व इसलिए और भी बढ़ जाता है क्योंकि यह मंदिर केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन और उनकी पार्टी के गढ़ में स्थित है। आठ साल पहले केरल में जब पिनाराई विजयन की वाम मोर्चा वाली सरकार आई तो उनकी कैबिनेट का सबसे बड़ा फैसलों में से एक खतरनाक कुत्तों को मारने का था। सरकार के इस फैसले के खिलाफ वैश्विक आक्रोश फैला इसका असर यह तक हुआ कि केरल की यात्रा करने वाले यात्रियों ने केरल के बहिष्कार का अभियान भी चला दिया।
क्या है मंदिर का इतिहास
पारसिनी मंदिर का इतिहास में मालाबार क्षेत्र की दमनकारी रीति-रिवाजों से जुड़ा हुआ है। इन रीति रिवाजों ने समाज की की जातियों को सम्मान और स्वतंत्रता से वंचित रखा था। भक्त भगवान मुथप्पन को सीमांत निवासियों के मुक्तिदाता के रूप में देखते हैं, जिन्होंने पालतू जानवारों विशेषरूप से कुत्तों के साथ अपने घनिष्ठ संबंधों को बनाए रखा।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान मुथप्पन यहां पर समाज की बुराईयों को दूर करने लिए यहां आए थे तब उनके साथ हमेशा एक कुत्ता रहता था। इस कारण से यहां कुत्तों को पवित्र माना जाता है और इस कारण उन्हें मंदिर में आने से भी नहीं रोका जाता है। लंबे समय से कुत्तों को यहां पर खाना मिलता रहता है इस कारण यहां पर कुत्तों की एक बड़ी संख्या यहां आसपास घूमती है।
हर दिन आते हैं 9 हजार से ज्यादा भक्त
मंदिर के एक ट्रस्टी के रिश्तेदार के अनुसार, उन्होंने कहा कि हमारा अनुमान है कि मंदिर में हर रोज करीब 9 हजार से ज्यादा भक्त पूजा करने के लिए आते हैं जबकि सप्ताह के अंत के दिनों में करीब 25 हजार से ज्यादा भक्त आते हैं। हर सुबह और शाम को, मंदिर में नायुत्तु या कुत्तों को खाना खिलाने का एक समारोह आयोजित किया जाता है। चारा मुख्यतः सूखी मछली से बनाया जाता है। एक दशक से अधिक समय से मंदिर में काम कर रहे मदाप्पुरा बताते हैं, “मंदिर परिसर और आसपास के कुत्ते नायुत्तु की तलाश में आते हैं। उन्हें पता होता है कि खाना खिलाने का समय कब हो गया है।
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