सर संघचालक डॉ. मोहन भागवत बोले-तीसरे विश्व युद्ध की कगार पर विश्व, भारत की ओर नजरें

सर संघचालक डॉ. मोहन भागवत बोले-तीसरे विश्व युद्ध की कगार पर विश्व, भारत की ओर नजरें

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विश्व के विकास के साथ धर्म और राजनीति की अवधारणा व्यवसाय बनी। वैज्ञानिक युग आया और वह भी शस्त्रों का व्यापार बनकर रह गया और फिर दो विश्व युद्ध हुए जिनसे विनाश हुआ। संपूर्ण विश्व दो विचारधारा में बंट गया। दुनिया को भस्म करने वाले अस्त्र दुनिया में हर जगह पहुंच चुके हैं। यह बातें जबलपुर के नेताजी सुभाषचंद्र बोस सभागार में आयोजित समारोह में डॉ. मोहन भागवत ने कहीं।

दुनिया तीसरे विश्व युद्ध की कगार पर है। इसकी वजह यूक्रेन या गाजा हो सकता है। ऐसे में विश्व आत्मिक शांति हेतु भारत की ओर आशापूर्ण दृष्टि से देख रहा है। योगमणि ट्रस्ट जबलपुर के तत्वावधान में स्व. डॉ. उर्मिला ताई जामदार स्मृति प्रसंग के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने वर्तमान में विश्व कल्याण हेतु हिंदुत्व की प्रासंगिकता पर अपने विचार रखे।

दुनिया में विकास के साथ नास्तिक और आस्तिक विचारधारा भी समृद्ध हुई

जबलपुर के नेताजी सुभाषचंद्र बोस सभागार में आयोजित समारोह में डॉ. मोहन भागवत ने पाश्चात्य विचारधारा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि दुनिया में विकास के साथ नास्तिक और आस्तिक विचारधारा भी समृद्ध हुई और यह संघर्ष का विषय भी बना, जो बलवान है वह जियेंगे और दुर्बल मरेंगे।

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विश्व आत्मिक शांति के लिए भारत की ओर आशापूर्ण दृष्टि से देख रहा है

समूहों की सत्ता का विचार भी सामने आया। उन्होंने कहा कि साधन तो असीमित हो गए पर मार्ग नहीं मिला। इसीलिए विश्व आत्मिक शांति हेतु भारत की ओर आशापूर्ण दृष्टि से देख रहा है।

लंबी सुख सुविधाओं और शांतिपूर्ण जीवन का मुख्य कारण रहा

सरसंघचालक ने कहा कि आज विश्व की स्थिति साधन संपन्न है, असीमित ज्ञान है पर उसके पास मानवता के कल्याण मार्ग नहीं है । भारत इस दृष्टि से संपन्न है। परंतु वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भारत ने अपने ज्ञान को विस्मृत कर दिया। लंबी सुख सुविधाओं और शांतिपूर्ण जीवन उसका मुख्य कारण रहा। और यह याद करना शेष है कि हमें विस्मृति के गर्त से बाहर निकलना है।

भौतिक और आध्यात्मिक जीवन में संतुलन के लिए दोनों का सहसंबंध आवश्यक

भारतीय जीवन दर्शन में अविद्या और विद्या दोनों का महत्व है, भौतिक और आध्यात्मिक जीवन में संतुलन बना रहे इसीलिए दोनों का सहसंबंध आवश्यक है । हिंदू धर्म में दोनों मार्ग से होकर चलता है इसीलिए अतिवादी और कट्टर नहीं है।

सृष्टि के पीछे एक ही सत्य है तथा उसका प्रस्थान बिंदु भी एक ही है

पश्चिम की अवधारणा में अतिवादिता तथा कट्टरपन दिखता है क्योंकि उन्हें अपने स्वार्थ की हानि का डर है इस कारण से यह उनकी दृष्टि अधूरी है। मोहन भागवत ने यह भी इंगित किया कि सृष्टि के पीछे एक ही सत्य है तथा उसका प्रस्थान बिंदु भी एक ही है।

जनवाणी के रूप में गुरु नानक देव ने सर्वप्रथम इसका प्रयोग किया

जन मानस में हिंदू शब्द बहुत पहले से प्रचलित था बाद में बाद इसका उल्लेख ग्रंथों में भी हुआ है, परंतु जनवाणी के रूप में गुरु नानक देव ने सर्वप्रथम इसका प्रयोग किया।

एक होकर रहना ही हिंदू है

हमारे यहां धर्म की अवधारणा सत्य ,करुणा, शुचिता एवम तपस है इसलिए यही धर्म दर्शन विश्व को कल्याण के लिए देना है। यही हिंदुत्व की आत्मा एवं विविधताओं के साथ एक होकर रहना ही हिंदू है।

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