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ग्वालियर में बढ़ते ध्वनि प्रदूषण पर निगरानी के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 2 लाख 80 हजार की लागत से शहर में चार स्थानों पर रीयल टाइम नोइस मानीटरिंग उपकरण स्थापित किए हैं। यह उपकरण लगाने से पहले शहर को चार जोन में बांटा गया, जिससे यह पता चल सके कि किस जोन में अधिक ध्वनि प्रदूषण हो रहा है।
सड़कों पर दौड़ते वाहनों के हार्न, शादियों में बजने वाला डीजे और लाउड स्पीकर रोज आपके कानों पर जमकर अत्याचार कर रहे हैं। यह कानफोड़ू आवाजें आपके कानों को खासा नुकसान पहुंचा रही हैं। यह सच्चाई प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़े बयां कर रहे हैं। विभाग ने शहर को चार जोन में बांटकर ध्वनि प्रदूषण मापक यंत्र स्थापित किए हैं, जिससे यह खुलासा हुआ है।
ईएनटी विशेषज्ञ भी बढ़ते ध्वनि प्रदूषण को कानों के लिए बड़ा खतरा मानते हैं। दरअसल ग्वालियर में बढ़ते ध्वनि प्रदूषण पर निगरानी के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 2 लाख 80 हजार की लागत से शहर में चार स्थानों पर रीयल टाइम नोइस मानीटरिंग उपकरण स्थापित किए हैं। यह उपकरण लगाने से पहले शहर को चार जोन में बांटा गया, जिससे यह पता चल सके कि किस जोन में अधिक ध्वनि प्रदूषण हो रहा है। इसमें शहर को साइलेंट जोन, रेसीडेंशियल जोन, कमर्शियल जोन और इंडस्ट्रियल जोन में बांटा गया है।
एक माह पहले स्थापित हुए उपकरण
मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कार्यपालन यंत्री ऋषीराज सेंगर के मुताबिक एक माह पहले यह उपकरण स्थापित किए गए हैं। अभी 4-6 माह तक इसके डेटा की मानीटरिंग की जाएगी और फिर इसका विश्लेषण किया जाएगा। जिसमें देखा जाएगा कि शोर का कारण क्या है। हालांकि जहां उपकरण स्थापित हैं, वहां आसपास सड़क ही है। ऐसे में वाहनों के हार्न और डीजे जैसे उपकरणों के कारण ही ध्वनी प्रदूषण होने की आशंका है। डेटा एनालिसिस के बाद इस पर प्लानिंग की जाएगी। इसके लिए स्थापित उपकरणों के 100 मीटर के दायरे को सर्च में लिया जाएगा।
कहां कितना ध्वनि प्रदूषण
साइलेंट जोन : जीवाजी यूनिवर्सिटी में उपकरण स्थापित किया गया है। इस क्षेत्र में आसपास हाईकोर्ट, जिला कोर्ट, कलेक्टर कार्यालय के साथ ही कई अन्य शिक्षण संस्थान भी हैं। इसी वजह से इसे साइलेंट जोन माना गया है।
क्या है स्थितिः यहां 40-45 डेसीबल तक आवाज होना चाहिए। जबकि वर्तमान में यहां औसत 55-60 डेसीबल तक ध्वनि प्रदूषण हो रहा है।
रिहायशी जोनः डीडी नगर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के नजदीक एक उपकरण लगाया गया है। यहां घनी आबादी है, जहां लोग निवास करते हैं। आसपास कमर्शियल एरिया कम है।
क्या है स्थितिः इस क्षेत्र में 50-55 डेसीबल तक की आवाज सहनीय है। जबकि वर्तमान में यहां 60-65 डेसीबल तक औसत शोर हो रहा है।
कमर्शियल जोन: महाराज बाड़ा को इसमें शामिल किया गया है और यहां भी एक मशीन लगाई गई है। यह पूरा व्यापारिक क्षेत्र है और वाहनों की आवाजाही भी अधिक होती है।
क्या है स्थितिः इस क्षेत्र के लिए 60-65 डेसीबल तक क्षमता निर्धारित है, जबकि यहां 75-80 डेसीबल तक शोर दर्ज किया गया है।
इंडस्ट्रियल जोनः इसमें महाराजपुरा औद्योगिक क्षेत्र को रखा है। यहां 70-75 डेसीबल तक आवाज का पैमाना निर्धारित है। यहां पर केवल 65-70 डेसीबल तक शोर रिकॉर्ड हुआ है, जो कम है।
(नोट:- यह डेटा 21 से 28 अक्टूबर के बीच मशीनों का औसत डेटा है)
रिहायशी या साइलेंट जोन में 55-60 डेसीबल तक का शोर सहनीय माना जा सकता है, इससे अधिक होने पर कान के पर्दों पर नुकसान की आशंका रहती है। हालांकि हमारे कानों की सहन करने की क्षमता अधिकतम 80 डेसीबल तक होती है, लेकिन साउंड एक्सपोजर पर भी निर्भर करता है। रिहायशी और कमर्शियल एरिया में वाहनों के हार्न की आवाजें, लाउड स्पीकर और डीजे की आवाजें सबसे ज्यादा ध्वनि प्रदूषण बढ़ाती हैं।
-डा. अमित रघुवंशी ईएनटी विशेषज्ञ।
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